बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
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जाने वालों से राब्ता रखना
फ़ातिहा
किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
वो लड़की
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी
सूरज को चोंच में लिए मुर्ग़ा खड़ा रहा
जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे
तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल महफ़िल गाएँगे
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई