ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Javed Akhtar
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ये जो फैला हुआ ज़माना है
तू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
चौथा आदमी
जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे
काला अम्बर पीली धरती या अल्लाह
ख़ुदा ख़ामोश है
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
मशीन
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना
कुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी