इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही
Habib Jalib
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जाने वालों से राब्ता रखना
फ़ातिहा
जो भला है उसे बुरा मत कर
फ़ासला
न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है
वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में
दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे
वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए