किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
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एक कहानी
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे
सलीक़ा
ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
तू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
तेरा सच है तिरे अज़ाबों में
न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है
उस को खो देने का एहसास तो कम बाक़ी है
ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
बुझ गए नील-गगन