कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है
Allama Iqbal
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कोई किसी से ख़ुश हो और वो भी बारहा हो ये बात तो ग़लत है
किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा है
दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
कल रात
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
उस को खो देने का एहसास तो कम बाक़ी है