ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है
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नया सफ़र
कोई हंगामा उठाया जाए
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
मोहब्बत में वफ़ादारी से बचिए
तू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
हर चमकती क़ुर्बत में एक फ़ासला देखूँ
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
पैदाइश
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न आप को
वालिद की वफ़ात पर
आएगा कोई चल के ख़िज़ाँ से बहार में