बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
सरहद-पार का एक ख़त पढ़ कर
कोई किसी से ख़ुश हो और वो भी बारहा हो ये बात तो ग़लत है
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में
छोटी सी हँसी
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
एक तस्वीर