बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ
फ़ातिहा
ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
हुए सब के जहाँ में एक जब अपना जहाँ और हम
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
काला अम्बर पीली धरती या अल्लाह
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
पिघलता धुआँ
सितंबर1965
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक