नीली पीली हरी गुलाबी
मैं ने सब रंगीन नक़ाबें
अपनी जेबों में भर ली हैं
अब मेरा चेहरा नंगा है
बिल्कुल नंगा
अब!
मेरे साथी ही मुझ पर
पग पग
पत्थर फेंक रहे हैं
शायद वो
मेरे चेहरे में अपना चेहरा देख रहे हैं
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बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
सच्चाई
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न आप को
इंसान हैं हैवान यहाँ भी है वहाँ भी
फ़क़त चंद लम्हे
गरज बरस प्यासी धरती फिर पानी दे मौला
कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया
हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे