बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू
बंसी राधा गीता गय्या अल्लाह हू
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कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
एक चिड़िया
दुआ सलाम में लिपटी ज़रूरतें माँगे
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे
वालिद की वफ़ात पर
नया दिन
कुछ तबीअ'त ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई
हुए सब के जहाँ में एक जब अपना जहाँ और हम
रात के बा'द नए दिन की सहर आएगी
इंसान हैं हैवान यहाँ भी है वहाँ भी
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
लफ़्ज़ों का पुल