अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी
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हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
दुआ सलाम में लिपटी ज़रूरतें माँगे
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
वो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी है
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
हिजरत
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी