तू अगर अब्र है मैं अब्र में पानी की तरह
मैं तिरे साथ हूँ लफ़्ज़ों में मआनी की तरह
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किन दुश्मनों का तीर बनाया गया हूँ मैं
मुझे भी या-रब फ़राग़त-ए-माह-ओ-साल देना
इक सानेहा सा दफ़्न हूँ लेकिन कभी कभी
अक्स आँखों में बे-धियानी का था
हर घड़ी हर लम्हा उठते पत्थरों के साथ मैं
तअल्लुक़ात-ए-वफ़ा में जो सर्द अब तक है
लहू की बेबसी को यूँ न रुस्वा छोड़ देना था
आईना सा अँधेरी रात का मैं