इक सानेहा सा दफ़्न हूँ लेकिन कभी कभी
सदियों की क़ब्र से भी उठाया गया हूँ मैं
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आईना सा अँधेरी रात का मैं
हर घड़ी हर लम्हा उठते पत्थरों के साथ मैं
किन दुश्मनों का तीर बनाया गया हूँ मैं
लहू की बेबसी को यूँ न रुस्वा छोड़ देना था
तू अगर अब्र है मैं अब्र में पानी की तरह
मुझे भी या-रब फ़राग़त-ए-माह-ओ-साल देना
तअल्लुक़ात-ए-वफ़ा में जो सर्द अब तक है
अक्स आँखों में बे-धियानी का था