किसी हर्फ़ में किसी बाब में नहीं आएगा
तिरा ज़िक्र मेरी किताब में नहीं आएगा
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(508) Peoples Rate This
हमारे दरमियाँ अहद-ए-शब-ए-महताब ज़िंदा है
तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती
जलाए रक्खूँ-गी सुब्ह तक मैं तुम्हारे रस्तों में अपनी आँखें
अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
उसे लाख दिल से पुकार लो उसे देख लो
मैं तन्हा लड़की दयार-ए-शब में जलाऊँ सच के दिए कहाँ तक
यही नहीं कोई तूफ़ाँ मिरी तलाश में है
तितलियाँ जुगनू सभी होंगे मगर देखेगा कौन
ये नाम मुमकिन नहीं रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा
कौन भँवर में मल्लाहों से अब तकरार करेगा
मोहब्बतें जब शुमार करना तो साज़िशें भी शुमार करना
इश्क़ करो तो ये भी सोचो अर्ज़-ए-सवाल से पहले