मैं तन्हा लड़की दयार-ए-शब में जलाऊँ सच के दिए कहाँ तक
सियाहकारों की सल्तनत में मैं किस तरह आफ़्ताब लिक्खूँ
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अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
उदास शाम की एक नज़्म
किसी हर्फ़ में किसी बाब में नहीं आएगा
तितलियाँ जुगनू सभी होंगे मगर देखेगा कौन
तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती
अजीब ख़्वाहिश है शहर वालों से छुप छुपा कर किताब लिक्खूँ
ये आरज़ू थी कि हम उस के साथ साथ चलें
यही नहीं कोई तूफ़ाँ मिरी तलाश में है
कुछ नहीं चाहिए तुझ से ऐ मिरी उम्र-ए-रवाँ
हिज्र के पर भीग जाएँ
वो बात बात में इतना बदलता जाता है