मैं फ़ैसले की घड़ी से गुज़र चुकी हूँ मगर
किसी का दीदा-ए-हैराँ मिरी तलाश में है
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यही नहीं कोई तूफ़ाँ मिरी तलाश में है
एक जैसा मुकालिमा
दिल का क्या है दिल ने कितने मंज़र देखे लेकिन
मैं तन्हा लड़की दयार-ए-शब में जलाऊँ सच के दिए कहाँ तक
उदास शाम की एक नज़्म
जलाए रक्खूँ-गी सुब्ह तक मैं तुम्हारे रस्तों में अपनी आँखें
उसे लाख दिल से पुकार लो उसे देख लो
ये नाम मुमकिन नहीं रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा
दिल था कि ख़ुश-ख़याल तुझे देख कर हुआ
हिज्र की शब में क़ैद करे या सुब्ह-ए-विसाल में रक्खे
ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैं
अजीब ख़्वाहिश है शहर वालों से छुप छुपा कर किताब लिक्खूँ