तितलियाँ जुगनू सभी होंगे मगर देखेगा कौन
हम सजा भी लें अगर दीवार-ओ-दर देखेगा कौन
Javed Akhtar
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Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
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दुश्मन-ए-जाँ कई क़बीले हुए
बहुत तारीक सहरा हो गया है
जलाए रक्खूँ-गी सुब्ह तक मैं तुम्हारे रस्तों में अपनी आँखें
उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
हर ज़र्रा-ए-उम्मीद से ख़ुशबू निकल आए
मिरी आवाज़ सुनते हो
हिज्र के पर भीग जाएँ
कौन भँवर में मल्लाहों से अब तकरार करेगा
ये नाम मुमकिन नहीं रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा
किसी हर्फ़ में किसी बाब में नहीं आएगा
उदास शाम की एक नज़्म