तह-ब-तह खुलती ही रहती है सदा
'मीर' के दीवान सी है ज़िंदगी
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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हमारी ज़ात में बस्ते सभी हैं
ख़ाली दीवार बुरी लगती है
वक़्त बदला सोच बदली बात बदली
हर तरफ़ नाला-ओ-फ़रियाद के मंज़र देखें
उभरती डूबती साँसों का सिलसिला क्यूँ है
दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं
मशीनें काम अपना कर रही हैं
अजब अश्कों की बारिश हो गई है
खोलो न कोई ऐब किसी का भी यहाँ पर
अपना सच उस को सुनाने के लिए
नया चार दिन में पुराना हुआ