तिरी निस्बत से अपनी ज़ात का इदराक करने में

तिरी निस्बत से अपनी ज़ात का इदराक करने में

बहुत अर्सा लगा है पैरहन को चाक करने में

तिरी बस्ती के बाशिंदे बहुत आसूदा-ख़ातिर हैं

तकल्लुफ़ हो रहा है दर्द को पोशाक करने में

हम अपने जिस्म का सोना सफ़र पर ले के निकले हैं

मगर डरते हैं इस को रास्तों की ख़ाक करने में

फ़क़त इक दीदा-ए-तर है कि जो सैराब करता है

समुंदर सूख जाते हैं बदन नमनाक करने में

हमारे साथ कुछ गुज़रे हुए मौसम भी शामिल हैं

तमाशा-गाह-ए-आलम तुझ को इबरत-नाक करने में

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In Hindi By Famous Poet Obaid Siddiqi. is written by Obaid Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Obaid Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.