मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
बिल्कुल नहीं मिटी है कमयाब हो गई है
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मुझे अब नया इक बदन चाहिए
मैं फ़र्द-ए-जुर्म तेरी तय्यार कर रहा हूँ
दुनिया को इस बार फ़साना कर दूँगा
पहले इक मौज-ए-हवा आती है
हमें कुछ और जीना है तो दिल को शाद रक्खेंगे
मैं ख़्वाब अपने सारे नीलाम कर रहा हूँ
ख़ुश्क दरियाओं को पानी दे ख़ुदा
कार-ए-दुनिया के तक़ाज़ों को निभाने में कटी
हवा-ए-शाम न जाने कहाँ से आती है
बैठे बिठाए आज फिर किस का ख़याल आ गया
कब तक उस का हिज्र मनाता सहरा छोड़ दिया
कभी कभी ये सूना-पन खल जाता है