मैं पहले बे-बाक हुआ था जोश-ए-मोहब्बत में
मेरी तरह फिर उस ने भी शरमाना छोड़ा था
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मैं ख़्वाब अपने सारे नीलाम कर रहा हूँ
गर्मी सी ये गर्मी है
ज़मीन बार-हा बदली ज़माँ नहीं बदला
दरिया जो चढ़ा है वो उतरने नहीं देना
तू भी फ़रियादी हुआ था इल्तिजा मैं ने भी की
अब ये सिफ़त जहाँ में नायाब हो गई है
मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
होंट खुलें तो निकले वाह
कार-ए-दुनिया के तक़ाज़ों को निभाने में कटी
दुनिया को इस बार फ़साना कर दूँगा
क्या सुने कोई ज़बानी मेरी
कब तक उस का हिज्र मनाता सहरा छोड़ दिया