बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं
Allama Iqbal
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Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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कुछ तो बताओ शाइर-ए-बेदार क्या हुआ
वीरान सराए का दिया है
मैं उस को भूल गया हूँ वो मुझ को भूल गया
मोहब्बत
मैं एक से किसी मौसम मैं रह नहीं सकता
वहशतें कैसी हैं ख़्वाबों से उलझता क्या है
कोई धुन हो मैं तिरे गीत ही गाए जाऊँ
आईना
नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह
तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
मिरे ख़ुदा मुझे वो ताब-ए-नय-नवाई दे