तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
मुझ में तो ज़िंदगी का कोई हौसला न था
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साथी से
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
शिकस्त-ए-जाँ से सिवा भी है कार-ए-फ़न क्या क्या
वो ख़्वाब ख़्वाब फ़ज़ा-ए-तरब नहीं आई
पलट सकूँ ही न आगे ही बढ़ सकूँ जिस पर
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
अज़ाब आए थे ऐसे कि फिर न घर से गए
कूचा-ए-इश्क़ से कुछ ख़्वाब उठा कर ले आए
कोई धुन हो मैं तिरे गीत ही गाए जाऊँ
काश देखो कभी टूटे हुए आईनों को
निगार-ए-सुब्ह की उम्मीद में पिघलते हुए
हाए वो लोग गए चाँद से मिलने और फिर