काश देखो कभी टूटे हुए आईनों को
दिल शिकस्ता हो तो फिर अपना पराया क्या है
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अज़ाब आए थे ऐसे कि फिर न घर से गए
जब मिला हुस्न भी हरजाई तो उस बज़्म से हम
आओ तुम ही करो मसीहाई
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
मैं जिस में खो गया हूँ मिरा ख़्वाब ही तो है
अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर
तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ
सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना
कमाल-ए-आदमी की इंतिहा है
दुखे हुए हैं हमें और अब दुखाओ मत
साथी से