अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
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Wasi Shah
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
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तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है
हम ने खुलने न दिया बे-सर-ओ-सामानी को
कुछ दिन तो बसो मिरी आँखों में
बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
जिस को मिलना नहीं फिर उस से मोहब्बत कैसी
जब मिला हुस्न भी हरजाई तो उस बज़्म से हम
दुआ दुआ चेहरा
कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
मैं एक से किसी मौसम मैं रह नहीं सकता
साहिब-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अर्ज़-ओ-समा क्यूँ चुप है