अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते
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जो आ रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को
आओ तुम ही करो मसीहाई
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
बाहर का धन आता जाता असल ख़ज़ाना घर में है
दुआ दुआ चेहरा
वहशतें कैसी हैं ख़्वाबों से उलझता क्या है
कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मोहब्बतें कैसी
साथी से
जब मिला हुस्न भी हरजाई तो उस बज़्म से हम
वहशत उसी से फिर भी वही यार देखना
पा-ब-ज़ंजीर सही ज़मज़मा-ख़्वाँ हैं हम लोग