आओ तुम ही करो मसीहाई
अब बहलती नहीं है तन्हाई
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विसालिया
एक मैं भी हूँ कुलह-दारों के बीच
अल्फ़ाज़
नींद आँखों से उड़ी फूल से ख़ुश्बू की तरह
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
मैं उस को भूल गया हूँ वो मुझ को भूल गया
खा गया इंसाँ को आशोब-ए-मआश
मोहब्बत
अब तो फ़िराक़-ए-सुब्ह में बुझने लगी हयात
ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
शायद इस राह पे कुछ और भी राही आएँ
सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना