आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा
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वहशत उसी से फिर भी वही यार देखना
अब तो फ़िराक़-ए-सुब्ह में बुझने लगी हयात
निगार-ए-सुब्ह की उम्मीद में पिघलते हुए
अहल-ए-दिल के दरमियाँ थे 'मीर' तुम
तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ
मैं ये किस के नाम लिक्खूँ जो अलम गुज़र रहे हैं
बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स
दिल ही थे हम दुखे हुए तुम ने दुखा लिया तो क्या
ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
साहिब-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अर्ज़-ओ-समा क्यूँ चुप है
हर आवाज़ ज़मिस्तानी है हर जज़्बा ज़िंदानी है
आइडियल