जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
बदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई
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अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
वहशत उसी से फिर भी वही यार देखना
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
मुझ से मिरा कोई मिलने वाला
मैं एक से किसी मौसम मैं रह नहीं सकता
तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
साथी से
सुब्ह-ए-चमन में एक यही आफ़्ताब था
याद
अल्फ़ाज़
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए