हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
जो बुझ गए तो हवा से शिकायतें कैसी
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
वीरान सराए का दिया है
आओ तुम ही करो मसीहाई
हम ने खुलने न दिया बे-सर-ओ-सामानी को
मैं जिस में खो गया हूँ मिरा ख़्वाब ही तो है
शायद इस राह पे कुछ और भी राही आएँ
तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
आईना
वो रात बे-पनाह थी और मैं ग़रीब था
जिस को मिलना नहीं फिर उस से मोहब्बत कैसी
बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स