मुझ से मिरा कोई मिलने वाला
बिछड़ा तो नहीं मगर मिला दे
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वहशत उसी से फिर भी वही यार देखना
सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना
मैं जिस में खो गया हूँ मिरा ख़्वाब ही तो है
दिल ही थे हम दुखे हुए तुम ने दुखा लिया तो क्या
हर आवाज़ ज़मिस्तानी है हर जज़्बा ज़िंदानी है
मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
ऐ मेरे ख़्वाब आ मिरी आँखों को रंग दे
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मोहब्बतें कैसी
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
अज़ाब आए थे ऐसे कि फिर न घर से गए