मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या
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आओ तुम ही करो मसीहाई
याद
ये और बात कि इस अहद की नज़र में हूँ
अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है
पा-ब-ज़ंजीर सही ज़मज़मा-ख़्वाँ हैं हम लोग
वो ख़्वाब ख़्वाब फ़ज़ा-ए-तरब नहीं आई
एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
नुमू
हर आवाज़ ज़मिस्तानी है हर जज़्बा ज़िंदानी है
हाए वो लोग गए चाँद से मिलने और फिर
जो आ रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को