मैं एक से किसी मौसम में रह नहीं सकता
कभी विसाल कभी हिज्र से रिहाई दे
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आओ तुम ही करो मसीहाई
हाए वो लोग गए चाँद से मिलने और फिर
हर आवाज़ ज़मिस्तानी है हर जज़्बा ज़िंदानी है
दिल ही थे हम दुखे हुए तुम ने दुखा लिया तो क्या
शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है
ऐ मेरे ख़्वाब आ मिरी आँखों को रंग दे
कोई और तो नहीं है पस-ए-ख़ंजर-आज़माई
कुछ तो बताओ शाइर-ए-बेदार क्या हुआ
ख़ुर्शीद मिसाल शख़्स कल शाम
बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स
मुझ से मिरा कोई मिलने वाला
विसालिया