ऐ मेरे ख़्वाब आ मिरी आँखों को रंग दे
ऐ मेरी रौशनी तू मुझे रास्ता दिखा
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ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
कूचा-ए-इश्क़ से कुछ ख़्वाब उठा कर ले आए
पा-ब-ज़ंजीर सही ज़मज़मा-ख़्वाँ हैं हम लोग
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
एक मैं भी हूँ कुलह-दारों के बीच
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
वीरान सराए का दिया है
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
मिट्टी था मैं ख़मीर तिरे नाज़ से उठा
निगार-ए-सुब्ह की उम्मीद में पिघलते हुए