कोई और तो नहीं है पस-ए-ख़ंजर-आज़माई
हमीं क़त्ल हो रहे हैं हमीं क़त्ल कर रहे हैं
Gulzar
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बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
दुआ दुआ चेहरा
वहशत उसी से फिर भी वही यार देखना
शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है
पा-ब-ज़ंजीर सही ज़मज़मा-ख़्वाँ हैं हम लोग
हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
शायद कि ख़ुदा में और मुझ में
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
मैं ये किस के नाम लिक्खूँ जो अलम गुज़र रहे हैं
दुखे हुए हैं हमें और अब दुखाओ मत
मैं कैसे जियूँ गर ये दुनिया हर आन नई तस्वीर न हो