सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना
ये ज़िंदगी है हमारी सँभाल कर रखना
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फिर इस तरह कभी सोया न इस तरह जागा
कल मातम बे-क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो
मैं एक से किसी मौसम मैं रह नहीं सकता
शायद कि ख़ुदा में और मुझ में
जब मिला हुस्न भी हरजाई तो उस बज़्म से हम
तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ
ख़ुर्शीद मिसाल शख़्स कल शाम
बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स
शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
तू अपनी आवाज़ में गुम है मैं अपनी आवाज़ में चुप
साथी से