ये ज़ीस्त कि है फूल सी मिट जाए बला से
गुलचीं से मगर बर-सर-ए-पैकार ही रहिए
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मसीहा
मिरे ना-रसा तसव्वुर ने सुराग़ पा लिया है
चुप रहोगे तो ज़माना इस से बद-तर आएगा
हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे
इक बेवफ़ा के नाम
झूमर
हम शाएर-ए-हयात हैं हम शाएर-ए-हयात!
शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
हिकायत-ए-'दौराँ'
पंद्रह-अगस्त
कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले