ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!
हर शाख़ है तलवार यहाँ, जागते रहना
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तुम आ गए हो जब से खटकने लगी है शाम
ऐ हम-नफ़सो! शब है गिराँ जागते रहना
भूकी नस्ल का तराना
बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'
मिरे ना-रसा तसव्वुर ने सुराग़ पा लिया है
हिकायत-ए-'दौराँ'
पैवंद की तरह नज़र आता है बद-नुमा
कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले
शोला-ए-तरब
शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
हम शाएर-ए-हयात हैं हम शाएर-ए-हयात!
पहले घिरे थे बे-ख़बरों के हुजूम में