भूकी नस्ल का तराना

मैं भूकी नस्ल हूँ

मेरे मलूल ओ मुज़्महिल चेहरा पे

ठंडी चाँदनी का अक्स मत ढूँडो

मिरा बे-रंग-ओ-बू चेहरा

जमी है अन-गिनत फ़ाक़ों की जिस पर धूल बरसों से

ज़मीं के चंद फ़िरऔनों को अपनी ख़शमगीं नज़रों से तकता है

मिरे अज्दाद भी

मेरी तरह भूके थे लेकिन मुझ में और उन में

ज़मीन-ओ-आसमाँ का फ़र्क़ है शायद

वो अपनी भूक को तक़दीर का लिक्खा समझते थे

क़नाअत उन का तकिया था

तवक्कुल उन का शेवा था

मगर मैं ऐसी हर झूटी तसल्ली का मुख़ालिफ़ हूँ

मुक़द्दर के अँधेरों में नहीं

मेरा यक़ीं है रौशनी-ए-सुब्ह-ए-फ़र्दा में

मैं भूकी नस्ल हूँ

मेरे लबों पर नाला-ओ-फ़रियाद की लय के एवज़

इक आग है

तेवर में ग़ुस्सा है

ये वो ग़ुस्सा है जिस से

मेरा दुश्मन थरथराता है

(583) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Bhuki Nasl Ka Tarana In Hindi By Famous Poet Owais Ahmad Dauran. Bhuki Nasl Ka Tarana is written by Owais Ahmad Dauran. Complete Poem Bhuki Nasl Ka Tarana in Hindi by Owais Ahmad Dauran. Download free Bhuki Nasl Ka Tarana Poem for Youth in PDF. Bhuki Nasl Ka Tarana is a Poem on Inspiration for young students. Share Bhuki Nasl Ka Tarana with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.