हम शाएर-ए-हयात हैं हम शाएर-ए-हयात!
'दौराँ' वो सुर्ख़ रंग का परचम तो दो हमें
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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ख़ज़ाने भी मिलें इस के एवज़ तो हम न बेचेंगे
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार हैं तेरी आँखें
शोला-ए-तरब
मसीहा
शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले
ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!
उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे
पंद्रह-अगस्त
सब मस्तियों में फेंको न पत्थर इधर उधर
चुप रहोगे तो ज़माना इस से बद-तर आएगा
ग़मगीं हैं दिल-फ़िगार हैं मेरे यहाँ के लोग