सब मस्तियों में फेंको न पत्थर इधर उधर
दीवानो! इस दयार में शीशे के घर भी हैं
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शोला-ए-तरब
पंद्रह-अगस्त
इन झिलमिलाते चाँद सितारों की छाँव में
झूमर
शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
बहती नहीं है मर्द की आँखों से जू-ए-अश्क
हिकायत-ए-'दौराँ'
उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे
ये ज़ीस्त कि है फूल सी मिट जाए बला से
ऐसा न हो ये रात कोई हश्र उठा दे
इडेन गार्डेन
हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे