बहती नहीं है मर्द की आँखों से जू-ए-अश्क
लेकिन हमें बताओ कि हम किस लिए हँसें
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शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
तुम्ही सरदार हो गुलशन के ये बतला देना
भूकी नस्ल का तराना
हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे
तह-ए-ख़ंजर
इक बेवफ़ा के नाम
उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे
तुम आ गए हो जब से खटकने लगी है शाम
सब मस्तियों में फेंको न पत्थर इधर उधर
पंद्रह-अगस्त
हम शाएर-ए-हयात हैं हम शाएर-ए-हयात!
कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले