उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे
रौनक़ें जिन में नहीं आप की महफ़िल की सी
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
ऐ हम-नफ़सो! शब है गिराँ जागते रहना
पैवंद की तरह नज़र आता है बद-नुमा
मसीहा
इन झिलमिलाते चाँद सितारों की छाँव में
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार हैं तेरी आँखें
वो लहू पी कर बड़े अंदाज़ से कहता है ये
इस दौर ने बख़्शे हैं दुनिया को अजब तोहफ़े
इडेन गार्डेन
बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'
पंद्रह-अगस्त
कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले