इस दौर ने बख़्शे हैं दुनिया को अजब तोहफ़े

इस दौर ने बख़्शे हैं दुनिया को अजब तोहफ़े

घबराए हुए पैकर उकताए हुए चेहरे

कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले

कुछ लोग हैं हम जैसे कुछ लोग हैं तुम जैसे

हर गाँव सुहाना हो हर शहर चमक उठ्ठे

दिल की ये तमन्ना है पूरी हो मगर कैसे

बिफरी हुई दुनिया ने पत्थर तो बहुत फेंके

ये शीश-महल लेकिन ऐ दोस्त कहाँ टूटे

यूँही तो नहीं बहती ये धार लहू जैसी

इस बार फ़ज़ाओं से ख़ंजर ही बहुत बरसे

क्यूँ आग भड़क उट्ठी शाएर के ख़यालों की

ये राज़ की बातें हैं नादान तू क्या जाने

सौ बार सुना हम ने सौ बार हँसी आई

वो कहते हैं पत्थर को हम मोम बना देंगे

फिर गोश-ए-तसव्वुर में अब्बा की सदा आई

फिर उस ने दर-ए-दिल पे आवाज़ दी चुपके से

इस ख़ाक पे बिखरा है इक फूल हमारा भी

जब बाद-ए-सबा आए कुछ देर यहाँ ठहरे

अफ़्साना-नुमा कोई रूदाद नहीं मेरी

झाँका न कभी मैं ने ख़्वाबों के दरीचे से

मुश्किल है ये 'दौराँ' इस भीड़ को समझाना

मुड़ मुड़ के जो रहज़न से मंज़िल का पता पूछे

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