ऐसा न हो ये रात कोई हश्र उठा दे
उठता है सितारों से धुआँ जागते रहना
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ये ज़ीस्त कि है फूल सी मिट जाए बला से
पैवंद की तरह नज़र आता है बद-नुमा
बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'
वो लहू पी कर बड़े अंदाज़ से कहता है ये
तुम आ गए हो जब से खटकने लगी है शाम
इक बेवफ़ा के नाम
उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे
ऐ हम-नफ़सो! शब है गिराँ जागते रहना
हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे
चुप रहोगे तो ज़माना इस से बद-तर आएगा
तह-ए-ख़ंजर
मसीहा