पंडित जवाहर नाथ साक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का पंडित जवाहर नाथ साक़ी (page 2)

पंडित जवाहर नाथ साक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का पंडित जवाहर नाथ साक़ी (page 2)
नामपंडित जवाहर नाथ साक़ी
अंग्रेज़ी नामPandit Jawahar Nath Saqi

छू ले सबा जो आ के मिरे गुल-बदन के पाँव

बुराई भलाई की सूरत हुई

अपने जुनूँ-कदे से निकलता ही अब नहीं

यही तमन्ना-ए-दिल है उन की जिधर को रुख़ हो उधर को चलिए

वो रम-शिआ'र मिरा शोख़-दीदा आया था

वो पास है तेरे दूर नहीं तू वासिल है महजूर नहीं

वो आए निगार मैं न मानूँ

वही ज़िद उन को है वही है हट

वाह क्या हम को बनाया और बना कर रह गए

तुम ने देखा ही नहीं है वो निज़ाम-ए-मख़्सूस

तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है

तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब

तअय्युन तसलसुल है नक़्श-ए-बदन का

तालिब-ए-इश्क़ है क्या सालिक-ए-उर्यां न हुआ

तलाश जिस नूर की है तुझ को छुपा है तेरे बदन के अंदर

शहीद-ए-अरमाँ पड़े हैं बिस्मिल खड़ा वो तलवार का धनी है

मुझ से कहते हो क्या कहेंगे आप

मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा

क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में

किस रंग में बयान करें माजरा-ए-क़ल्ब

कर सैर अपने दिल की है नूर का तमाशा

कहाँ है वो गुल-ए-ख़ंदाँ हमें नहीं मालूम

जो बशर हर वक़्त महव-ए-ज़ात है

जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात

जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है

इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़

हम से जो अहद था वो अहद-शिकन भूल गया

हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा

हसरत-ओ-उम्मीद का मातम रहा

हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका

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