छू ले सबा जो आ के मिरे गुल-बदन के पाँव
क़ाएम न हों चमन में नसीम-ए-चमन के पाँव
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हुए बे-ख़ुद तो बे-ख़ुदी आई
उश्शाक़ जो तसव्वुर-ए-बर्ज़ख़ के हो गए
मुझ से कहते हो क्या कहेंगे आप
तू ने सूरत जो अपनी दिखलाई
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
जो बशर हर वक़्त महव-ए-ज़ात है
जम गए राह में हम नक़्श-ए-क़दम की सूरत
दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं
गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
सालिक है गरचे सैर-ए-मक़ामात-ए-दिल-फ़रेब