गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का
तरह्हुम हो गया फ़रियाद-रस का
रहे साबित-क़दम राह-ए-वफ़ा में
शिकस्ता दिल हुआ पा-ए-हवस का
हुज़ूरी हो गई ग़ीबत में हम को
तरन्नुम दिल में है बाँग-ए-जरस का
करें उस शोख़ से हम क़त्-ए-उल्फ़त
नहीं ये काम 'साक़ी' अपने बस का
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दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
शहीद-ए-अरमाँ पड़े हैं बिस्मिल खड़ा वो तलवार का धनी है
इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
दिल-ए-ज़िंदा ख़ुद रहनुमा हो गया
अपने जुनूँ-कदे से निकलता ही अब नहीं
तुम ने देखा ही नहीं है वो निज़ाम-ए-मख़्सूस
हम को भरम ने बहर-ए-तवहहुम बना दिया
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
जम गए राह में हम नक़्श-ए-क़दम की सूरत
दिल भी अब पहलू-तही करने लगा
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं