दिल भी अब पहलू-तही करने लगा
हो गया तुम सा तुम्हारी याद में
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दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा
शहीद-ए-अरमाँ पड़े हैं बिस्मिल खड़ा वो तलवार का धनी है
महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं
कहाँ है वो गुल-ए-ख़ंदाँ हमें नहीं मालूम
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
तअय्युन तसलसुल है नक़्श-ए-बदन का
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
आप हैं महव-ए-हुस्न-ओ-रानाई
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है
क़ालिब को अपने छोड़ के मक़लूब हो गए
हसरत-ओ-उम्मीद का मातम रहा
कर सैर अपने दिल की है नूर का तमाशा