क़ालिब को अपने छोड़ के मक़्लूब हो गए
क्या और कोई क़ल्ब है इस इंक़लाब में
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
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Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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तलाश जिस नूर की है तुझ को छुपा है तेरे बदन के अंदर
तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
यही तमन्ना-ए-दिल है उन की जिधर को रुख़ हो उधर को चलिए
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
आप हैं महव-ए-हुस्न-ओ-रानाई
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं
जो बशर हर वक़्त महव-ए-ज़ात है
दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा
हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका
इश्क़ माशूक़ का है पैदाई